
जबलपुर, 15 सितंबर 2025 : जबलपुर की सड़कों पर बुधवार को भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में एक भव्य किसान आंदोलन हुआ, जिसमें सैकड़ों किसान अपने ट्रैक्टरों के साथ जिला कलेक्टर कार्यालय घंटाघर पहुंचे। इस रैली का मुख्य उद्देश्य लैंड पुलिंग एक्ट के विरोध और मूंग-उड़द सहित धान व गेहूं के रूके हुए भुगतान की मांग करना था।
किसानों का विरोध और ज्ञापन सौंपा
भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख राघवेंद्र सिंह पटैल और प्रांत महामंत्री प्रहलाद सिंह पटैल ने घंटाघर में किसान सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश का किसान लैंड पुलिंग एक्ट के खिलाफ है। उनका कहना था कि यह कानून किसानों की हाईवे के किनारे की जमीन छीनने का प्रयास है, जिससे किसान भूमिहीन होकर मजदूरी करने को मजबूर होंगे। उन्होंने सरकार से कानून को तुरंत वापस लेने की मांग की।

किसानों ने खाद की कमी को भी लेकर विरोध जताया और खाद की बोरियों को ढोकर प्रदर्शन किया। इस दौरान किसान संघ के जिलाध्यक्ष रामदास पटैल और जिला मंत्री धनंजय पटैल ने अतिरिक्त कलेक्टर ऋषभ जैन और नाथूराम गौंड़ को ज्ञापन सौंपा, जिसमें एमएलटी वेयरहाउस में रूके हुए मूंग-उड़द का भुगतान तुरंत करने की मांग की गई।
ज्ञापन सौंपने के दौरान किसानों में भ्रष्टाचार, भुगतान में देरी और खाद की कमी को लेकर भारी आक्रोश देखा गया। उन्होंने प्रशासन और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।
प्रशासन पर दबाव और ट्रैक्टर रैली
भारतीय किसान संघ के नेतृत्व में हुई ट्रैक्टर रैली से प्रशासन की नींद उड़ी। रातभर प्रशासनिक अधिकारी किसान नेताओं से संपर्क में रहे और प्रयास किया कि रैली शहर के अंदर न पहुंचे। इसके बावजूद किसान संघ ने जिला प्रशासन को सहयोग का आश्वासन दिया और रैली मार्ग पर मुख्य चौराहों पर यातायात व्यवस्था में सहयोग करते दिखे।
प्रमुख उपस्थित किसान नेता
रैली और धरना प्रदर्शन में शामिल प्रमुख नेताओं में अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख राघवेंद्र सिंह पटैल, प्रांत महामंत्री प्रहलाद सिंह पटैल, प्रांत उपाध्यक्ष मोहन तिवारी, आलोक पटैल, जिलाध्यक्ष रामदास पटैल, जिला मंत्री धनंजय पटैल, सह मंत्री सुनील पटैल, संभाग उपाध्यक्ष दामोदर पटैल, तहसील अध्यक्ष वीरेद्र साहू, रीतेश पटैल, वीरेंद्र पटैल, धरम पटैल, भानू पटैल, शरद भुर्रक, लकी ग्रोवर, मनीष पटैल, राजकुमार पटेल, सुरेश पटैल, रामकृष्ण सोनी, आषीश पटैल सहित सैकड़ों गाँवों के किसान शामिल रहे।
किसानों का यह आंदोलन भुगतान, खाद और जमीन संरक्षण के मुद्दों पर सरकार और प्रशासन के लिए एक गंभीर चेतावनी साबित हुआ।