एनएसयूआई प्रदेश सचिव अदनान अंसारी ने उठाया बड़ा मुद्दा: ‘सरकारी विश्वविद्यालयों को सुधारे बिना, प्रायवेट कालेजों की जांच बेमानी’
रादुविवि समेत सभी सरकारी विश्वविद्यालयों की जांच की मांग

जबलपुर। प्रदेश के अपर मुख्य सचिव उच्च शिक्षा विभाग द्वारा अशासकीय महाविद्यालयों के निरीक्षण और सत्यापन के आदेश पर भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI) ने अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। हाल ही में, उच्च शिक्षा विभाग ने प्रदेश के सभी जिला कलेक्टरों को आदेश दिए थे कि वे राजस्व अधिकारियों की एक टीम गठित कर प्रदेश के अशासकीय महाविद्यालयों की जांच करें। इस आदेश का स्वागत करते हुए, NSUI ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया को पूरी तरह से प्रभावी और न्यायसंगत बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा संचालित सरकारी विश्वविद्यालयों की जांच भी होनी चाहिए।
एनएसयूआई के प्रदेश सचिव अदनान अंसारी ने कहा कि जिन सरकारी विश्वविद्यालयों के अधिकार क्षेत्र में ये अशासकीय महाविद्यालय आते हैं और जो इन्हें संबद्धता प्रदान करते हैं, उनकी अपनी स्थिति बहुत ही चिंताजनक है। अंसारी ने आरोप लगाया कि ये विश्वविद्यालय न केवल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के मानकों का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि छात्रों के शैक्षिक हितों के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
अदनान ने आगे कहा, “सरकारी विश्वविद्यालयों और कालेज की अनियमितताओं को नजरअंदाज कर केवल प्रायवेट कालेजों की जांच करना शिक्षा व्यवस्था में सुधार का अधूरा प्रयास है।” अदनान ने उदाहरण के तौर पर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय (रादुविवि) का उल्लेख किया, जहां कुलपतियों की नियुक्ति और विश्वविद्यालय के संचालन प्रक्रिया को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विश्वविद्यालयों को अपनी संबद्धता की प्रक्रिया पर पुनर्विचार नहीं किया गया, तो शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने का प्रयास निरर्थक होगा।
एनएसयूआई का यह भी कहना है कि जिन सरकारी विश्वविद्यालयों के पास पर्याप्त फैकल्टी, अनुसंधान सुविधाएं और योग्य नेतृत्व नहीं हैं, वे महाविद्यालयों को संबद्धता देने के योग्य कैसे हो सकते हैं? यह सवाल उठाते हुए, अंसारी ने जोर दिया कि जब तक सरकारी विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली और संबद्धता प्रक्रिया पारदर्शी नहीं होती, तब तक छात्रों के लिए बेहतर शैक्षिक वातावरण सुनिश्चित करना असंभव है।
एनएसयूआई के शफी खान ने कहा कि उच्च शिक्षा में सुधार के लिए यह आवश्यक है कि केवल अशासकीय महाविद्यालयों को ही निशाना न बनाया जाए, बल्कि राज्य सरकार के विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली और उनकी अनियमितताओं की भी जांच की जाए। अगर सरकार अपने संस्थानों को सुधारने में सफल नहीं होती, तो एक आदर्श प्रस्तुत करना संभव नहीं होगा।
उच्च शिक्षा में सुधार की दिशा में उठाए गए कदमों पर अब सबकी नजरें
राज्य सरकार द्वारा अशासकीय महाविद्यालयों की जांच के आदेश का उद्देश्य शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने का है, लेकिन इस कदम के बाद से यह सवाल भी उठने लगा है कि जब तक सरकारी विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली को पारदर्शी और मानकों के अनुरूप नहीं बनाया जाता, तब तक इस प्रयास का प्रभावी होना संभव नहीं है। एनएसयूआई का यह स्पष्ट कहना है कि शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए सरकारी विश्वविद्यालयों की जांच बेहद जरूरी है, ताकि पूरे शिक्षा तंत्र में एक समान और न्यायपूर्ण व्यवस्था बनाई जा सके।
यह मुद्दा अब राज्य सरकार के लिए एक चुनौती बन गया है, क्योंकि शिक्षा सुधार के लिए केवल अशासकीय महाविद्यालयों तक सीमित रहकर कोई भी बदलाव लाना संभव नहीं होगा। अब देखना यह है कि क्या राज्य सरकार अपनी नीतियों में बदलाव कर, उच्च शिक्षा में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाती है।