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सराय कालेखां चौक का नाम बदलकर ‘बिरसा मुंडा चौक’ रखा गया

आदिवासी समाज के महानायक बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर केंद्र सरकार ने एक फैसला लिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा की कि दिल्ली स्थित सराय कालेखां चौक का नाम अब “बिरसा मुंडा चौक” होगा। यह कदम बिरसा मुंडा की अद्वितीय विरासत और उनके योगदान को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उठाया गया है। इस फैसले के बाद से सराय कालेखां चौक चर्चा का केंद्र बन गया है, और लोग जानने के लिए उत्सुक हैं कि आखिर वह ‘काले खां’ कौन थे, जिनके नाम पर दशकों से दिल्ली का एक प्रमुख चौराहा जाना जाता था।

सराय कालेखां चौक का ऐतिहासिक महत्व

सराय कालेखां चौक, जो पहले ‘सराय कालेखां ISBT चौक’ के नाम से जाना जाता था, दिल्ली के दक्षिण-पूर्वी इलाके में स्थित है। “सराय” शब्द का अर्थ है ‘आश्रय स्थल’—यहां कभी यात्री और यात्रीगण दिल्ली में प्रवेश करते समय आराम करते थे। इस क्षेत्र के आस-पास जंगपुरा, खिजराबाद, निजामुद्दीन और लाजपत नगर जैसे प्रमुख इलाके स्थित हैं।

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इस चौक का ऐतिहासिक संदर्भ दिल्ली के विभिन्न कालखंडों से जुड़ा हुआ है, जिसमें इसकी पहचान और महत्व समय के साथ बढ़ा है।

काले खां: एक महान सूफी संत का योगदान

काले खां, जो 14वीं सदी के एक प्रसिद्ध सूफी संत थे, का नाम इस चौक से जुड़ा हुआ है। उनका जन्म शेरशाह सूरी के शासनकाल के दौरान हुआ था। काले खां की सूफी परंपरा और उनके योगदान के कारण उनका नाम इस क्षेत्र से जुड़ा, और इसके बाद इस स्थान को “सराय काले खां” के नाम से जाना जाने लगा। इस इलाके में उनकी मजार भी स्थित है, जो आज भी सूफी परंपरा का प्रतीक मानी जाती है।

दिल्ली में इंदिरा गांधी हवाई अड्डे के पास काले खां की मजार एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ श्रद्धालु आते हैं। यह स्थान सूफीवाद के समृद्ध इतिहास को दर्शाता है, जो आज भी इस इलाके की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।

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काले खां और सराय काले खां का एक अन्य इतिहास

कुछ लोगों का मानना है कि सराय काले खां नाम पहले एक गांव के नाम पर पड़ा था, जहां गुर्जर समाज के लोग रहते थे। इस गांव का नाम आज भी अस्तित्व में है, और समय के साथ यह क्षेत्र दिल्ली का हिस्सा बन गया। हालांकि गांव का नाम बदलकर कोई नया नाम नहीं रखा गया, और आज भी इसे ‘सराय काले खां’ के नाम से जाना जाता है।

सराय कालेखां का भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व

सराय कालेखां चौक, यमुना नदी के किनारे स्थित होने के कारण ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। इसके नजदीक ही हुमायूं का मकबरा और निजामुद्दीन दरगाह जैसी ऐतिहासिक स्थलें हैं। इसके अलावा जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम भी यहां से कुछ दूरी पर स्थित है, जिससे यह क्षेत्र दिल्ली के प्रमुख ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के बीच स्थित है।

बिरसा मुंडा चौक का नामकरण: एक ऐतिहासिक कदम

सराय कालेखां चौक का नाम बदलकर ‘बिरसा मुंडा चौक’ रखने का निर्णय भारत सरकार की ओर से बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के मौके पर एक महत्वपूर्ण सम्मान है। यह कदम उनके संघर्ष और योगदान को आगे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के उद्देश्य से उठाया गया है, जिससे बिरसा मुंडा के आदिवासी समाज के लिए किए गए कार्यों और उनके स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका को भी नई पहचान मिल सके।

इस ऐतिहासिक निर्णय ने न केवल दिल्ली की पहचान को नया रूप दिया है, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों के योगदान को सम्मानित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।

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