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दर्दनाक : भाई खा गये बहन का हिस्सा, ’40 साल कानूनी लड़ाई लड़ते हुये बहन और भांजे की भी हुई मौत’, आखिर में हिन्दू जज साहब ने ‘कुरआन का हवाला’ देकर बहन को हिस्सा दिलाया

कुरआन हदीस का साफ अहकाम होने के बाद भी बहनों का हिस्सा खा जाना आज भी हिन्दुस्तानी मुस्लिम समाज में एक आम बात है. बड़ी तादाद तो हिस्सा खा जाती है, कुछ देने के नाम पर ऐसा घिनौना मजाक करते हैं कि उनसे बेहतर न देने वाले नजर आने लगते हैं.

कश्मीर के एक मुस्लिम परिवार में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें एक बहन को अपने भाइयों से अपने पिता की विरासत में हिस्सा पाने के लिए 40 साल लम्बा संघर्ष करना पड़ा। अदालत के फैसले का इंतजार करते-करते न केवल बहन का निधन हो गया, बल्कि एक बेटे का भी निधन हो गया, लेकिन फिर भी फैसला नहीं आया। इसके बाद दूसरे बेटे ने मामला संभाला और लगातार संघर्ष करते रहे। आखिरकार 40 साल बाद अदालत ने बहन को अपने भाइयों से विरासत में हिस्सा देने का आदेश दिया।

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दिलचस्प बात यह है कि इस फैसले को सुनाने वाले जज ने एक हिंदू जज ने की एक आयत का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें साफ तौर पर कहा गया था कि लड़कियों को भी पिता की विरासत में हिस्सा मिलना चाहिए।

यह घटना श्रीनगर के पास ज़ीना कोट की निवासी मख़्ती नामक महिला की है। 1980 में मख़्ती के भाइयों ने उन्हें पिता की विरासत से बाहर कर दिया और 69 कनाल ज़मीन पर कब्जा कर लिया। मख़्ती ने अदालत में मुकदमा दायर किया, लेकिन इस दौरान उसके भाइयों ने भूमि राजस्व विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर ज़मीन अपने नाम करवा ली। मख़्ती ने अपनी चार बेटियों और पांच बेटों की परवरिश करते हुए दशकों तक अदालत के चक्कर काटे, लेकिन 1996 में हाई कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, जिसे बाद में चुनौती दी गई। उसी साल मख़्ती का निधन हो गया।

इसके बाद मख़्ती के बड़े बेटे मोहम्मद सुलतान बट ने मुकदमे की पैरवी की, लेकिन वह भी अदालत के चक्कर काटते रहे और 2024 में उनका भी निधन हो गया। फिर मख़्ती के छोटे बेटे मोहम्मद यूसुफ बट ने मुकदमा जारी रखा। उनके वकील वली मोहम्मद शाह ने कहा, “देर से ही सही, मख़्ती के बच्चों को आखिरकार न्याय मिला।”

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जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद चटर्जी कोल ने फैसले में कहा, “यह अदालतें और अधिकारी मुस्लिम पर्सनल लॉ के बारे में कैसे अज्ञानी हो सकते हैं?” उन्होंने कुरान की सूरह النساء की ग्यारहवीं आयत का हवाला देते हुए कहा, “इस्लाम ने विरासत की स्पष्ट और स्पष्ट नियमों का पालन किया है, जिसके अनुसार लड़कों को लड़कियों से दोगुना हिस्सा मिलता है, क्योंकि वे अपने परिवार की देखभाल करते हैं, लेकिन लड़कियों को भी पिता की विरासत में हिस्सा मिलना चाहिए।”

अदालत ने मख़्ती के भाइयों को आदेश दिया कि अगर उन्होंने मख़्ती के हिस्से की ज़मीन बेच दी है, तो वह उनके बच्चों को मौजूदा कीमत के अनुसार पैसे दें या फिर उन्हें उतनी ही ज़मीन कहीं और प्रदान करें।

यह फैसला इस बात का संकेत है कि हालांकि मुसलमानों में विरासत की बंटवारे में बेटियों को अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता है, लेकिन अदालत ने कुरान की शिक्षाओं के अनुसार न्याय दिया।

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