
भारत का संविधान हर नागरिक को इस बात की इजाजत देता है कि वो जिस मजहब को चाहे उसपर अमल करे। राजिया बी, नंदनी बनें या अजीज उर रहमान, राजेश बन जाएं। यह उनका अधिकार क्षेत्र है। इसमें किसी भी इंसान को आपत्ति करने का अधिकार नहीं है।
लेकिन जबलपुर में यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या कानून इस बात की भी इजाजत देता है कि धर्म परिवर्तन के बाद प्रेस कांफ्रेंस करके अपने पुराने धर्म को गाली दे सकते हैं। फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजक खुले आम धर्म परिवर्तन के लिये प्रोत्साहित कर सकते हैं, चाहें तो आफर्स भी दे सकते हैं। धर्म परिवर्तन की खबर को नमक मिर्च मसाले के साथ डिजिटल और इलेक्ट्रानिक मीडिया में इस तरह से प्रकाशित भी किया जा सकता है, जिससे साफ समझ में आए धर्म परिवर्तन के लिये प्रत्साहित किया जा रहा है।
यह सवाल इसलिये भी उठ रहे हैं, क्योंकि बीते कुछ सालों से जबलपुर में इसी तरह के पैटर्न पर लगातार घटनाएं सामने आईं हैं।
कुछ दिनों पूर्व राजिया बी नाम की महिला ने धर्म परिवर्तन किया अपनाया था। इस बात पर महिला के परिवार या मुस्लिम समाज की तरफ कोई विरोध नहीं किया गया। सबने स्वीकार किया कि सबको अपनी मर्जी से चयन का संवैधानिक अधिकार है।
लेकिन इस धर्म परिवर्तन के मामले को जिस तरह से प्रचारित और प्रसारित किया गया था, उससे एक वर्ग विशेष में बैचेनी हुई थी। बकायदा धर्म परिवर्तन की पत्रकारवार्ता की गई और पुराने धर्म पर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई। फिर मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा उसे नकरात्मक तरीके से प्रचारित किया गया। कई दिन तक सोशल मीडिया पर इस खबर को इस तरह से दौड़ाया गया कि साफ दिख रहा था कि एक धर्म विशेष को कठघरे में लाया जा रहा है। ऐसा ही कुछ पैटर्न बीते दिनों जबलपुर में दो युवकों द्वारा धर्म परिवर्तन मामले में सामने आया है।
साजिश या इत्तेफाक
बीते कुछ साल में जबलपुर में धर्म विशेष छोड़ने से जुड़े मामलों में तीन चीजें कमोबेश कामन नजर थीं…
- पहली, 90 फीसद मामलों में धर्म परिवर्तन करने वाली जवान महिला होती है।
- दूसरी, महिला धर्म परिवर्तन से जुड़े मामलों में, धर्म परिवर्तन करवाने या करने में सहयोग करने वाले चेहरे अधिकांश बार करीब करीब एक ही होते हैं।
- तीसरी धर्म परिवर्तन की बकायदा सार्वजनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस होती है। फिर डिजिटल और इलेक्ट्रानिक मीडिया में उस खबर को गौरव गाथा की तरह प्रकाशित किया जाता है।
- फिर उन खबरों को सोशल मीडिया पर धर्म विशेष के खिलाफ नफरत फैलाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
तब गलत, अब सही
कुछ साल पहले जबलपुर के एक शाम के अख्बार ने दुनिया में जिन सिलेब्रेटी ने इस्लाम धर्म अपनाया था, उनके बारे में प्रकाशित कर दिया था। तब इन्हीं संगठनों ने इसे धर्म परिवर्तन के लिये प्रोत्साहित करना बताकर, आंदोलन किया था। तब डिजिटल मीडिया और कुछ इलैक्ट्रानिक मीडिया ने इसे धर्म परिवर्तन के लिये प्रोत्साहित करना दिखाया था। जिसके बाद अखबार संचालकों ने तत्काल उस सीरीज को बंद कर दिया था।
इत्तेफाक यह है कि कल उस प्रकाशन का विरोध करने वाले चेहरे ही आज धर्म परिवर्तन की खुली पत्रकारवार्ता कर रहे हैं। यह सब बड़े पैमान पर प्रकाशित भी हो रहा है। लेकिन अब इन कामों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रोत्साहित करने में नहीं गिना जाता है।
जांच की जरूरत
मुस्लिम समाज के बुध्दिजीवी, समाजसेवी और आमजन यह बात अब खुले तौर पर कहने लगे हैं किसी के धर्म परिवर्तन से किसी को कोई ऐतराज नहीं है। क्योंकि धर्म का चयन किसी नागरिक का निजी विषय और अधिकार है। लेकिन बीते कुछ सालों में एक खास तरह के पैटर्न पर लगातार होती एक तरह की चीज, जबलपुर के क्षेत्र विशेष में बैचैन पैदा कर रही है। साफ प्रतीत हो रहा है कि धर्म परिवर्तन के मामलों को धर्म विशेष के खिलाफ नफरत और घृणा फैलाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। लोगों की मांग है की प्रशासन को मामले को गंभीरता से लेते हुए मामले की उच्चस्तरीय जांच करनी चाहिये। जिससे शहर की संस्कृति, सद्भाव, मोहब्बत और भाईचारा बना रहे।