स्पेशल रिपार्ट: साधू बाबा (रह) के 26 वें उर्स पर जबलपुर में उमड़ा 4 राज्यों का जनसैलाब, हर मजहब के लोगों ने मांगी अमन की दुआएं

हजरत मोहम्मद हसन साधू बाबा रह का 26 वां सालाना उर्स मुबारक 18 और 19 मार्च को जबलपुर स्थित हाजी सुब्हानल्लाह शाह दरगाह मैदान में मुनक्किद किया. उर्स की तमाम तकारीब की सदारत आस्ताना ए सुब्हानिया के सज्जादानशीन मो बदरुद्दीन गुड्डू बाबा ने फरमाई. उर्स में महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार सहित जबलपुर और उसके अतराफ से बड़ी संख्या में अकीदतमंद और जायरीन मौजूद रहे.

उर्स में मौलाना जुन्नून नक्शबंदी, असलम बाबा खाकसार, मोहम्मद हबीब, फखरुल हसन, मोहम्मद मुरसलीन, मन्नान आशिक मेहमान खास रहे. वहीं खादिमे दरगाह यार मोहम्मद अंसारी, डॉ मोहम्मद इब्राहीम, मोहम्मद असलम, मोहम्मद इस्तियाक, मोहम्मद अब्दुल्ला, मो अकरम ने निजामत की जिम्मेदारी अदा की. उर्स के सफल आयोजन में दरगाह कमेटी के कलीम खान, एड शकील अहमद, मो हुसैन राईन, सुल्तान खान, हाजी सईद कूलर, शारिक अली सोनू, अब्दुल रशीद अंसारी, शेख अनवर, हफीज खान साहब का विशेष योगदान रहा.

दो दिन तक चला उर्स…
उर्स में पहले दिन 18 मार्च को असर की नमाज के बाद चादर पोशी की गई. वहीं बाद नमाजे ईशा कव्वाली का अहतिमाम हुआ. वहीं चादर संदल जुलूस मुस्लिम एरिया के विभिन्न मार्गों से होता हुआ दरगाह शरीफ पहुंचा, जहां चादर एवं गुल पोशी की गई. वहीं रात में गुलाम फरीद पेंटरर कव्वाल ने कलाम पेश किये. बाद नमाज फज्र कुल की फातिहा के साथ उर्स का समापन हुआ.

हजरत साधू बाबा रह की मुख्तसर सवानेह हयात (जीवनी)
हजरत मोहम्मद हसन साधू बाबा रह. की पैदाइश 10 मुहर्रम 1321 (08 अप्रैल 1903) में उत्तर प्रदेश के रानी गंज के हरीहर गंज में हुई। बचपन में ही आपके वालिद का इंतकाल हो गया. आपकी आपको और आपके बड़े भाई अब्दुल गफूर साहब को लेकर प्रतापगढ़ के अंतू में आकर बस गईं. कुछ ही समय बाद आपकी अम्मी भी अल्लाह को प्यारी हो गईं। जिसके आपकी परवरिश की जिम्मेदारी आपके बड़े भाई अब्दुल गफूर साहब ने उठाई। प्रारंभिक तालीम अंतू के के बाद आपने मदरसे में अरबी, उर्दू, फारसी और दीनियात की तालीम हासिल की।

रोजगार की तलाश में बड़े भाई आपको लेकर जबलपुर आ गए, जहाँ गोराबाजार में रहने लगे। बाद में आप भी खानसामा की नौकरी करने लगे। फारिग वक्त में हजरत साधू बाबा रह. गोराबाजार में मुकीम हाफिज मिन्ना साहब के पास जाते, जहाँ दीन और दुनिया की बातें होती थीं। एक दिन हाफिज मिन्ना साहब ने आपको सुब्हान बाग जाने का मशविरा दिया, और वहां जाकर आपने हजरत मुहम्मद उस्मान शाह कामिल बाबा रह. से पहली मुलाकात की।
इस मुलाकात का इतना गहरा असर हुआ कि आपने उनसे बैअत कर ली और पूरी जिंदगी उनके साथ वक्फ कर दी। 1940 में हजरत कामिल शाह बाबा रह. ने आपको अपना खलीफा बना लिया। इसके बाद आपने दर्स, तदरीस और दावत के काम में वक्फ हो गए।

1982 में हजरत कामिल शाह बाबा का इंतकाल हुआ, और इसके बाद आपने खानकाह सुब्हानिया की जिम्मेदारी संभाली। 5 जनवरी 1999 को साधू बाबा रह. की तबियत बिगड़ी और 16 रमजानुल मुबारक 1419 को आप इस दुनिया से रुखसत हो गये। 7 जनवरी 1999 को आपको आस्ताना सुब्हानिया में सुपुर्दे खाक किया गया।

14 फरवरी 1999 को सैंकड़ों लोगों की मौजूदगी में हजरत मुहम्मद बदरुद्दीन गुड्डू बाबा की दस्तारबंदी कर जानशीनी का ऐलान किया गया. तब से आज तक हजरत गुड्डू बाबा खानकाहे सुब्हानियां की जिम्मेदारियों अदा कर रहे हैं.
