गाजा का दर्द हम तक पहुंचाने वाली आखरी आवाज भी खामोश — अल-जज़ीरा पत्रकार ‘अनस अल-शरीफ़’ की शहादत

गाज़ा की टूटी-फूटी गलियों से दुनिया तक फ़िलिस्तीन का दर्द पहुँचाने वाली वह आवाज़ अब हमेशा के लिए खामोश हो गई। अल-जज़ीरा के बहादुर पत्रकार अनस अल-शरीफ़, जो भूखे बच्चों की सिसकियाँ और मलबे में दफ़न इंसानी ज़िंदगियों की कहानियाँ हम तक पहुँचा रहे थे, रविवार की शाम इज़राइली हमले में शहीद हो गए। जैसे हमारे अपने किसी भाई ने कलम और कैमरे से आख़िरी सांस तक सच की गवाही दी हो, वैसे ही अनस ने भी अपने लहू से इतिहास लिख दिया। उनकी शहादत हमें याद दिलाती है कि गाज़ा के ज़ख़्म सिर्फ़ उनके नहीं, बल्कि पूरी उम्मत के हैं।
गाज़ा, 11 अगस्त (Baz News Network)। रविवार की शाम गाज़ा सिटी के अल-शिफ़ा अस्पताल के बाहर बने एक मीडिया टेंट पर इज़राइली सेना ने निशाना साधकर हमला किया, जिसमें अल-जज़ीरा के साहसी और चर्चित पत्रकार अनस जमाल अल-शरीफ़ सहित उनके पाँच सहयोगियों की मौत हो गई। यह हमला जानबूझकर किया गया था, जिससे एक ऐसी आवाज़ हमेशा के लिए खामोश हो गई जो पूरी दुनिया को गाज़ा में हो रहे नरसंहार की सच्चाई दिखा रही थी।

गाज़ा की आवाज़, जिसे चुप कराना चाहा गया
पिछले दो वर्षों से अनस अल-शरीफ़ इज़राइल के गाज़ा पर युद्ध के बीच दुनिया तक वहाँ के हालात पहुँचाने वाले चंद पत्रकारों में से एक थे। वे मीडिया ब्लॉकेड के बावजूद भूख, बमबारी और तबाही के दृश्यों को रिपोर्ट करते रहे—माओं को मलबे में भोजन खोजते हुए, भूखे बच्चों की रातभर की सिसकियाँ, और हज़ारों विस्थापितों के लिए स्कूल टेंट में बने अस्थायी आश्रय।
इंटरनेट की कमी के बीच वे अक्सर घरों और अस्पतालों की छतों पर चढ़कर सिग्नल पकड़ते और रिपोर्ट भेजते। एक बार उन्होंने कहा था—
“सबसे ज्यादा दर्द मुझे बमबारी से नहीं, बल्कि उस बच्चे को देखकर होता है जो भूख से रोते-रोते सो जाता है, क्योंकि पूरे दिन एक निवाला भी नहीं मिला।”
जन्म, शिक्षा और पत्रकारिता की शुरुआत
अनस अल-शरीफ़ का जन्म 3 दिसंबर 1996 को उत्तरी गाज़ा के जबालिया शरणार्थी शिविर में हुआ। बचपन इज़राइल के लगातार युद्धों के बीच बीता। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UNRWA) और फ़िलिस्तीनी शिक्षा मंत्रालय के स्कूलों में पढ़ाई की।
2014 में अल-अक्सा विश्वविद्यालय में रेडियो और टेलीविज़न की पढ़ाई शुरू की और 2018 में स्नातक की डिग्री हासिल की। मीडिया करियर की शुरुआत शमाल मीडिया नेटवर्क में स्वयंसेवक के रूप में हुई, इसके बाद वे अल-जज़ीरा के गाज़ा संवाददाता बने।
इज़राइली आरोप और धमकियाँ
अपनी रिपोर्टिंग से इज़राइली युद्ध अपराधों और मानवीय संकट को उजागर करने पर वे इज़राइली सेना के निशाने पर आ गए। उन पर हमास से जुड़े होने और रॉकेट लॉन्चिंग में शामिल होने जैसे आरोप लगाए गए, जिन्हें उन्होंने और अल-जज़ीरा ने पूरी तरह झूठा बताया।
11 दिसंबर 2023 को इज़राइली हवाई हमले में उनके पिता की मौत हो गई। जुलाई 2023 में संयुक्त राष्ट्र की स्वतंत्र विशेषज्ञ आइरीन खान ने उनके खिलाफ धमकियों की निंदा की और चेतावनी दी कि यह उनकी जान को खतरे में डाल रहा है।
अंतरराष्ट्रीय सम्मान
युद्ध क्षेत्र में साहसिक पत्रकारिता के लिए उन्हें एमनेस्टी इंटरनेशनल ऑस्ट्रेलिया ने “ह्यूमन राइट्स डिफेंडर” पुरस्कार से सम्मानित किया।
हमले में शहीद हुए अन्य पत्रकार
इस हमले में फ़िलिस्तीनी पत्रकार मोहम्मद कुरैकेआ, फोटो पत्रकार मोहम्मद नौफल और इब्राहीम दाहेर भी मारे गए, जबकि पत्रकार मोहम्मद सोबोह घायल हो गए।
पत्रकारों पर बढ़ते हमले
7 अक्टूबर 2023 से अब तक इज़राइली हमलों में 237 फ़िलिस्तीनी पत्रकार मारे जा चुके हैं। विदेशी पत्रकारों को गाज़ा में प्रवेश से रोक दिया गया है और केवल इज़राइली सेना के नियंत्रित “प्रचारात्मक दौरों” की अनुमति है। यह स्पष्ट करता है कि गाज़ा में हो रहे नरसंहार की सच्चाई दुनिया तक पहुँचने से रोकना ही लक्ष्य है।
अनस अल-शरीफ़ की शहादत न सिर्फ़ गाज़ा, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक दर्दनाक क्षति है। उन्होंने आखिरी सांस तक कलम और कैमरे से इंसाफ़ और सच्चाई की लड़ाई लड़ी।