
लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि यूपी में चिकित्सा पद्धति इलेक्ट्रो होम्योपैथी की पढ़ाई और प्रैक्टिस पर कोई रोक नहीं है, लेकिन प्रैक्टिस करने वाले अपने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लिख सकते हैं और पढ़ाई करने वाले संस्थान किसी को डिग्री या डिप्लोमा नहीं दे सकते हैं।
यूपी सरकार ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के लिए अभी कोई कानूनी प्रावधान नहीं बनाया है, इसलिए किसी को भी इसकी डिग्री या डिप्लोमा नहीं दिया जा सकता। साथ ही संस्थान भी किसी को भी डिग्री या डिप्लोमा नहीं दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी की पढ़ाई पर भी रोक नहीं है, लेकिन इसकी शिक्षा दे रहे संस्थान केवल प्रमाणपत्र जारी कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने यह आदेश हरदोई और अयोध्या के इलेक्ट्रो होम्योपैथी के दो प्रैक्टिसनरों राजेश कुमार और एक अन्य की याचिका पर दिया। याचिका 2009 में दाखिल की गई थी। इसके बाद केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सुप्रीम कोर्ट और कुछ हाईकोर्ट ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी को लेकर आदेश जारी किए। उन सभी के आदेशों को संज्ञान में लेते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने 25 नवंबर, 2003 को एक आदेश में कहा था, जिसमें इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस को लेकर कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं। जिसमें कहा गया है कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस में उन दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना जरूरी है। इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस से याचीगण को तब तक न रोका जाए जब तक कि सरकार इसको लेकर कोई नियम नहीं बनाती है। कोर्ट ने इस टिप्पणी व आदेश के साथ याचिका निरस्त कर दी।