
न्यूयॉर्क / एजेंसी रिपोर्ट। अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में एक ऐतिहासिक चुनाव हुआ। वहाँ ज़ोहरान ममदानी, जो एक मुस्लिम और भारतीय मूल के युवा नेता हैं, मंगलवार को न्यूयॉर्क के 111वें मेयर चुने गए। उन्होंने अमेरिका के जाने-माने नेता पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो और रिपब्लिकन उम्मीदवार कर्टिस स्लीवा को हराकर बड़ी जीत दर्ज की।
34 साल के ज़ोहरान ममदानी अब न्यूयॉर्क के पहले मुस्लिम मेयर और अफ्रीका में जन्मे पहले व्यक्ति बन गए जो इस बड़े शहर का नेतृत्व करेंगे।
💬 ममदानी का संदेश — “यह शहर सबका है”
जीत के बाद ज़ोहरान ममदानी ने अपने समर्थकों से कहा —
“आज रात, हमने मुश्किलों के बावजूद इसे कर दिखाया है। न्यूयॉर्क, तुमने बदलाव को चुना है — एक ऐसा शहर जिसे हर कोई वहन कर सके।”
उन्होंने कहा कि यह जीत हर उस मेहनतकश इंसान की है जो न्यूयॉर्क की रूह को ज़िंदा रखता है।
“मैं यमन के दुकानदारों, सेनेगल के टैक्सी ड्राइवरों, उज़्बेक नर्सों, त्रिनिदाद के कुक, और इथियोपिया की आंटियों की बात कर रहा हूँ — यह शहर तुम्हारा है, और यह लोकतंत्र भी तुम्हारा है।”
🕌 ममदानी कौन हैं?
ज़ोहरान ममदानी उगांडा (अफ्रीका) में पैदा हुए और बाद में अमेरिका चले गए। उनके माता-पिता भारतीय मूल के हैं।
वह खुद को “डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट” यानी लोकतांत्रिक समाजवादी कहते हैं। उनका मानना है कि सरकार को आम लोगों की मदद करनी चाहिए, न कि सिर्फ अमीरों की।
उनके चुनावी वादे बहुत सीधे और ज़मीनी थे —
- मुफ़्त बच्चों की देखभाल (Free Childcare)
- मुफ़्त बस यात्रा (Free Bus Transport)
- किराया स्थिर रखना ताकि गरीब लोग घर से न निकलें
📊 चुनाव में ज़बरदस्त बढ़त
90% वोट गिने जाने तक, ममदानी को 10,33,471 वोट मिले।
कुओमो को 8,52,032 वोट, और स्लीवा को सिर्फ 7% वोट मिले।
ममदानी ने पूरे चुनाव में गरीबों, प्रवासियों और आम नागरिकों की आवाज़ उठाई — और जनता ने उन पर भरोसा जताया।
🟢 इस जीत से तीन बड़ी सीखें
- असली मुद्दों की बात करो, लोग साथ आ जाएंगे।
ममदानी ने धर्म या जाति की नहीं, महंगाई, घर के किराए और बच्चों की पढ़ाई की बात की — यही असली राजनीति है। - हर तबके को साथ लेकर चलो।
उन्होंने किसी एक वर्ग को नहीं, बल्कि हर मज़हब, हर नस्ल, हर भाषा वाले लोगों को जोड़ लिया। - ईमानदार और सच्चा संवाद भरोसा दिलाता है।
उनका सोशल मीडिया प्रचार सीधा, साफ और भरोसेमंद था। लोग उन्हें “अपना” मानने लगे।
यह जीत सिर्फ ज़ोहरान ममदानी की नहीं, बल्कि उन सभी लोगों की है जो मानते हैं कि राजनीति इंसानियत और बराबरी के लिए होनी चाहिए।
उनकी कामयाबी भारतीय मुसलमानों के लिए भी एक प्रेरणा है —
जब कोई नौजवान अपने समुदाय की बात ईमानदारी से, समझदारी से और मेहनत से रखता है, तो दुनिया उसकी आवाज़ सुनती है।



