
जबलपुर। 13 अक्टूबर 2025 जबलपुर के मुसलमानों की तारीख का एक ऐतिहासिक दिन था। यह दिन “काला दिन” था या “नई सुबह का आगाज़”, इस पर मतभेद हो सकते हैं।
लेकिन इस बात में कोई मतभेद नहीं है कि 13 अक्टूबर 2025 से मोमिन ईदगाह गोहलपुर में 1930 से चली आ रही करीब 95 साल पुरानी परंपरा खत्म हो चुकी है। अब यहां अंजुमन इस्लामिया वक्फ मढाताल की तर्ज पर “जिसकी सत्ता, जिसका विधायक, उसके कार्यकर्ताओं की कमेटी” वाली परंपरा शुरू हो चुकी है।
जानकार मान रहे हैं कि मोमिन ईदगाह गोहलपुर से एक आग उठी है। यह आग इंक़लाब का बिगुल है या सब कुछ बर्बाद करने वाली आग — यह समय बताएगा। लेकिन अब एक-एक कर मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों के अंदर की वक्फ संपत्तियां इस आग की जद में आएंगी।
संभावित पैटर्न गोहलपुर वाला ही होगा — व्यापारी और बड़े नेता का समर्थन प्राप्त कर स्थानीय लड़के दूसरी वक्फ संपत्तियों के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे।
फिर भोपाल वक्फ बोर्ड में डायरेक्ट राजनीतिक सेटिंग भिड़ाकर सीधे कमेटियां उखाड़ फेंकी जाएंगी। नई कमेटियों में पार्टी कार्यकर्ता सदस्य बनेंगे। उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के संदेह, सवालों और विरोध को ‘हिसाब के शोर’ में दबा दिया जाएगा। पुरानी कमेटी अगर आसनी से चार्ज नहीं देगी तो प्रशासनिक मशीनरी के दम पर ताला तोड़कर वक्फ संपत्तियों पर कब्जे जैसा चार्ज लेने का रास्ता अपनाया जाएगा।
जानकार मान रहे हैं, मोमिन ईदगाह की लड़ाई ‘नई कमेटी बनाम पुरानी कमेटी’ नहीं थी। यह लड़ाई थी नई व्यवस्था बनाम पुरानी व्यवस्था, और इस लड़ाई में नई व्यवस्था की जीत होती दिख रही है। समय के साथ पुरानी व्यवस्था में आई खामियों को सुधारा जाना चाहिये था या नई व्यवस्था लाई जानी चाहिये थी. यह फैसला समाज को करना था। मोमिन ईदगाह मामले में समाज की इज्तिमाई खामोशी यह बता रही है की उसने “जिसकी सत्ता, जिसका विधायक, उनके कार्यकर्ताओं की कमेटी वाली नई व्यवस्था को समर्थन दिया है।”
ईदगाह पर कब्जा या चार्ज ट्रांसफर… एक नजर में घटनाक्रम
सोमवार 13 अक्टूबर को वक्फ बोर्ड द्वारा नामित नई कमेटी को चार्ज दिलाने की प्रक्रिया फिर से होनी थी। पूर्व में भी कई बार विधिवत पुरानी कमेटी को नई कमेटी को चार्ज सौंपने के नोटिस जारी हो चुके थे। लेकिन चार्ज सौंपने से अंसार समाज की मर्कजी पंचायत ने मना कर दिया था, जिस वजह से पुरानी कमेटी ने चार्ज नहीं सौंपा। कई बार नियमानुसार कोशिश के बाद सोमवार 13 अक्टूबर को दोबारा चार्ज ट्रांस्फर की प्रक्रिया फिर शुरु हुई।
गोहलपुर में रविवार रात से ही पुलिस गश्त शुरू हो गई थी। सोमवार सुबह 10 बजे तक गोहलपुर ईदगाह जाने वाले मार्ग पर हलके पुलिस बल की तैनाती कर दी गई। दोपहर तक लगभग चार से पाँच थानों का पुलिस बल ईदगाह के चारों ओर मौजूद था।
ईदगाह गेट पर विरोध कर रहे अंसारी समाज के प्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों को पुलिस ने हिरासत में लेकर जेल भेज दिया, ताकि विरोध आगे न बढ़े और हालात न बिगड़ें।
कुछ समय बाद ईदगाह के मुख्य गेट का ताला तोड़ दिया गया। क्रमवार सभी ताले तोड़े गए। पूरी प्रक्रिया में एक कांग्रेस नेता और एक वरिष्ठ भाजपा नेता सबसे आगे देखे गए, जबकी दोनों नई कमेटी के सदस्य नहीं थे।
इसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने वक्फ बोर्ड द्वारा नामित नई कमेटी को विधिवत चार्ज दिलाया।


उसके बाद से सोशल मीडिया पर अलग-अलग पार्टियों के लड़कों की आईडी से एक मैसेज ट्रेंड होने लगा, जिसका सार था —
“अगला नम्बर सुब्बाह शाह दरगाह का है।”
दोनों कमेटी की जिम्मेदारी
पुरानी कमेटी के जिम्मेदार कह रहे हैं यह कोई चार्ज लेने की प्रक्रिया नहीं थी इसे मोमिन ईदगाह पर कब्जे की कार्रवाई के रूप में देखा जाना चाहिए। 13 अक्टूबर 2025 को जो कुछ हुआ और जिस तरह से हुआ, वह इस आरोप को बल देता कि यह ईदगाह पर कब्जे की कार्रवाई थी। तकनीकी तौर पर इसे वैध तरीके से कब्जा दिलाने की प्रक्रिया कह सकते है.. या मजबूरी में चुना गया अंतिम विकल्प कह सकते हैं। लेकिन बुजुर्ग कह रहे हैं इस परिस्थितयों को टाला जाता तो बेहतर होता. क्योंकि यह इबादत गाह थी इसकी अजमत को नुकसान पहुंचाने वाले हर काम से परहेज किया जाना चाहिये था। हालात यहां तक लाने में नई कमेटी और पुरानी दोनों कमेटी की जिम्मेदारी है।
पूरे घटनाक्रम में ‘प्रशासन एवं पुलिस‘ की भूमिका..
गोहलपुर स्थित मोमिन ईदगाह से जुड़े करीब एक साल तक चले पूरे घटनाक्रम की सबसे दिलचस्प बात यह रही कि यह मामला स्थानीय राजनीति से प्रेरित था, शासन की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। वहीं प्रशासन ने पूरी प्रक्रिया में नियमों के अनुरूप और अंतिम समय तक सभी पक्षों के बीच समन्वय बनाए रखने की सफल कोशिश की। स्थानीय थाना और पुलिस प्रशासन ने भी इस पूरे एक वर्ष के दौरान समाज के सभी वर्गों के प्रति संयम और संतुलन बनाए रखा। 13 अक्टूबर को हुई कार्रवाई में भी पुलिस ने अत्यंत सीमित और नियंत्रित भूमिका निभाई। जिला प्रशासन और पुलिस के संयमित एवं जिम्मेदार रवैये के कारण ही एक गंभीर स्थिति में बदलता दिख रहा विवाद .. वहां तक नहीं गया, जिसका डर सभी को था ।
यह समय तय करेगा
13 अक्टूबर 2025 को जो हुआ — वहां एक फर्नीचर व्यवसायी की सरपरस्ती वाली नई कमेटी सही है या अंसार समाज के मुखिया की सरपरस्ती वाली पुरानी व्यवस्था सही — यह समय तय करेगा।
लेकिन 13 अक्टूबर 2025 एक नई परंपरा की शुरुआत कर चुका है। वह परंपरा यह है कि अब जबलपुर के मुस्लिम क्षेत्रों की वक्फ मीरास में अंजुमन इस्लामिया वक्फ मढाताल की तरह “जिसका विधायक, उसकी कमेटी” वाला फार्मूला चलेगा।
यही लग रहा है की.. अब ईदगाह उसी की होगी, जिसकी सरकार होगी — आज भाजपा की सरकार है तो ईदगाह भाजपा कार्यकर्ताओं के हवाले, कल कांग्रेस की सरकार आएगी तो ईदगाह कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के हवाले चली जाएगी।
मोमिन ईदगाह पर समाज के सीधे और पूर्ण नियंत्रण का सपना अब सपना ही रहेगा।
13 अक्टूबर 2025 की यह घटना केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ है— जिसके बाद जबलपुर मुस्लिम बाहुल्य एरिया की वक़्फ़ मीरास की तारिख में व्यापक बदलाव आएगा। जानकार मान रहे हैं यह सब यहां नहीं रुकेगा यह सब ईदगाह से आगे बढ़कर अब मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र की दूसरी वक्फ मीरास तक जायेगा।
राजनीतिक पार्टियों के लड़कों ने नारा लगाना शुरू कर दिया —
“अगला नम्बर सुब्बाह शाह का है।”



