‘मरे हुए आदमी के स्पर्म से बच्चा पैदा’ करने पर दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

मृत्यु के बाद सरोगेसी : दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि मृत्यु के बाद सरोगेसी के माध्यम से बच्चे को जन्म देने पर कोई कानूनी रोक नहीं है। यह फैसला एक ऐसे मामले में आया है, जहां सर गंगाराम अस्पताल ने एक मृत व्यक्ति के फ्रीज किए गए स्पर्म को देने से इनकार कर दिया था। इस मामले में अदालत ने अस्पताल को आदेश दिया कि वह मृत व्यक्ति के स्पर्म उसके माता-पिता को सौंपे, ताकि वे सरोगेसी के जरिए अपने पोते-पोती को जन्म दे सकें।
मामले की शुरुआत: कैंसर के इलाज के दौरान स्पर्म फ्रीज करना
इस मामले की शुरुआत 2020 में हुई थी, जब एक युवक कैंसर का इलाज करवा रहा था। कीमोथेरेपी शुरू होने से पहले, डॉक्टरों ने युवक और उसके परिवार को बताया था कि कैंसर के इलाज से उसकी प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे बांझपन हो सकता है। इसके बाद, युवक ने जून 2020 में सर गंगाराम अस्पताल की आईवीएफ लैब में अपने स्पर्म को फ्रीज करवाने का फैसला किया।
अस्पताल का इनकार और अदालत का रुख
युवक की मृत्यु के बाद, उसके माता-पिता ने अस्पताल से उसके फ्रीज किए गए स्पर्म को सौंपने की मांग की। हालांकि, अस्पताल ने बिना किसी कानूनी आदेश के स्पर्म जारी करने से इनकार कर दिया। यह मामला तब अदालत में पहुंचा, जहां दिल्ली हाईकोर्ट ने 84 पेज का फैसला सुनाया और कहा कि मृतक के माता-पिता को उनके बेटे के अनुपस्थित रहने के बावजूद सरोगेसी के माध्यम से अपने वंश को आगे बढ़ाने का मौका मिल सकता है।
मृत्यु के बाद सरोगेसी : कानूनी और नैतिक पहलू
अदालत ने कहा कि याचिका में कई महत्वपूर्ण कानूनी, नैतिक और आध्यात्मिक मुद्दे उठाए गए हैं। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि मौजूदा भारतीय कानून के तहत, अगर स्पर्म या अंडाणु के मालिक की सहमति का प्रमाण दिया जाता है, तो उसकी मृत्यु के बाद भी प्रजनन पर कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है। यह फैसला एक ऐतिहासिक निर्णय माना जा रहा है, क्योंकि यह मृत्यु के बाद प्रजनन से जुड़े कानूनी और नैतिक मुद्दों को स्पष्ट करता है।
मृत्यु के बाद प्रजनन: एक नई दिशा
मृत्यु के बाद प्रजनन का तात्पर्य सहायक प्रजनन तकनीक का उपयोग करके गर्भधारण की प्रक्रिया से है, जिसमें एक या दोनों जैविक माता-पिता की मृत्यु हो चुकी होती है। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि यदि किसी व्यक्ति ने अपनी मृत्यु से पहले स्पर्म या अंडाणु को संरक्षित किया है और उसकी सहमति मौजूद है, तो सरोगेसी के माध्यम से उसके वंश को आगे बढ़ाया जा सकता है।
केंद्र सरकार से मार्गदर्शन की आवश्यकता
अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिए और यह तय करना चाहिए कि क्या मृत्यु के बाद प्रजनन से संबंधित किसी कानून, अधिनियम या दिशा-निर्देश की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि इस तरह के मामलों में भविष्य में कानूनी मार्गदर्शन की आवश्यकता हो सकती है, ताकि ऐसे मुद्दों पर स्पष्टता बनी रहे।
अस्पताल को स्पर्म सौंपने का आदेश
अदालत ने सर गंगाराम अस्पताल को निर्देश दिया कि वह दंपति को उनके मृत अविवाहित बेटे के संरक्षित किए गए स्पर्म तुरंत प्रदान करे। इस फैसले के बाद, मृतक के माता-पिता सरोगेसी के माध्यम से अपने वंश को आगे बढ़ा सकेंगे।
यह फैसला न केवल कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि नैतिक और आचारिक दृष्टिकोण से भी एक बड़ा कदम है। मृत्यु के बाद सरोगेसी के माध्यम से वंश को आगे बढ़ाने का मुद्दा अभी भी विवादित हो सकता है, लेकिन अदालत ने इसे कानूनी रूप से मान्यता दी है, जिससे ऐसे मामलों में भविष्य के लिए एक मिसाल कायम हो गई है।
मृत्यु के बाद सरोगेसी –
1. क्या मृत्यु के बाद सरोगेसी के माध्यम से बच्चे का जन्म संभव है?
हां, दिल्ली हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया है कि यदि मृतक की सहमति हो, तो सरोगेसी के माध्यम से बच्चे का जन्म संभव है।
2. क्या भारत में मृत्यु के बाद प्रजनन पर कानूनी रोक है?
मौजूदा भारतीय कानून के तहत, अगर स्पर्म या अंडाणु का मालिक अपनी मृत्यु से पहले इसकी सहमति देता है, तो मृत्यु के बाद प्रजनन पर कोई कानूनी रोक नहीं है।
3. सर गंगाराम अस्पताल ने स्पर्म देने से क्यों इनकार किया?
अस्पताल ने अदालत के उचित आदेश के बिना स्पर्म जारी करने से इनकार कर दिया था, लेकिन अदालत ने अस्पताल को स्पर्म सौंपने का आदेश दिया।
4. क्या मृत्यु के बाद सरोगेसी से जन्म लेने वाले बच्चे के कानूनी अधिकार होते हैं?
हां, सरोगेसी से जन्म लेने वाले बच्चे के कानूनी अधिकार होते हैं, और उसे उसके जैविक माता-पिता के वंश के रूप में मान्यता मिलती है।
5. क्या भारत में मृत्यु के बाद प्रजनन के लिए कोई विशेष कानून है?
फिलहाल भारत में मृत्यु के बाद प्रजनन से संबंधित कोई विशेष कानून नहीं है, लेकिन अदालत ने केंद्र सरकार को इस पर दिशा-निर्देश बनाने पर विचार करने को कहा है।