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इजराइल-ईरान जंग में फिर चौधरी बना अमेरिका! | 1971 में भी भारत पर चला था सैन्य दांव

तेलअवीव। इजराइल और ईरान में पिछले छह दिन से जंग जारी है। दोनों देशों के बीच के सैन्य संघर्ष में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के खिलाफ इजराइल को सपोर्ट करने की बात कही है। इस बात ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ा दी है। अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ट्रंप ने व्हाइट हाउस के सिचुएशन रूम में अपनी नेशनल सिक्योरिटी टीम के साथ करीब 20 मिनट तक बैठक की। इस दौरान ईरान के परमाणु ठिकानों पर कार्रवाई के ऑप्शन्स पर बात की। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब दो देशों के बीच युद्ध में अमेरिका चौधरी बना है। इससे पहले भी वो कुछ देशों के बीच के युद्ध में कूद चुका है।

बता दें 1948 में कोरिया को 38वें समानांतर रेखा के साथ में दो भागों में विभाजित किया गया था। उत्तर में सोवियत संघ द्वारा समर्थित एक कम्युनिस्ट सरकार थी, तो वहीं साउथ में अमेरिका समर्थित एक गैर कम्युनिस्ट सरकार। 25 जून 1950 को उत्तर कोरिया ने साउथ कोरिया पर हमला कर दिया था। इससे युद्ध शुरू हो गया था। अब अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में साउथ कोरिया की मदद के लिए हस्तक्षेप किया था। यह युद्ध तीन साल तक चला था, जिसमें दोनों पक्षों को बहुत नुकसान हुआ था। 1953 में एक युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए, लेकिन तब कोई शांति संधि नहीं हुई थी। इस लिहाज से दोनों कोरिया आज भी तकनीकी रूप से युद्ध की स्थिति में हैं।

चीन और अमेरिका के साथ कभी कोई सीधे तौर पर युद्ध नहीं हुआ है, लेकिन जब कोरिया और अमेरिका के बीच युद्ध चल रहा था, उस समय भी कोरिया दो हिस्सों में बंटा था। तब अमेरिका ने कोरियाई युद्ध में चीन के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, लेकिन यह सीधे तौर पर चीन और अमेरिका के बीच युद्ध नहीं था।

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1971 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था, तब अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपने नौसैनिक बेड़े यूएसएस एंटरप्राइज को बंगाल की खाड़ी में उतार दिया था, लेकिन अमेरिका ने सेना को जमीन पर नहीं उतारा था। 1971 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के सपोर्ट के लिए भारत उसकी मदद कर रहा था। उस वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर पाकिस्तान के साथ थे और भारत के खिलाफ थे।

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