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1974 दोहराएगा जबलपुर या 2019 से बड़ी होगी भाजपा की जीत

जबलपुर में एक नौजवान खड़ा होता है। सीधे केन्द्र सरकार को चुनौती देता है। और आवाज लगता है,

वो खुद जेल में बंद था। न चुनाव लड़ने का पैसा था उसका पास। न कार्यकर्ताओं की फौज। बस जुनून था, बदलाव लाने का.. ।

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सबने उस नौजवान को मजाक में लिया। सब कह रहे थे की इस बार भी चुनाव एकतरफा है। कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी को नहीं हराया जा सकता।

लेकिन जब नतीजे आए तो उस समय की सबसे मजबूत पार्टी कांग्रेस को उसके गढ़ जबलपुर में उस नौजवान ने हरा दिया।

शरद यादव की पुरानी ऐतिहासिक तस्वीर

आज जबलपुर में आंकड़े भाजपा के पक्ष में है और हर दिन उम्मीद कांग्रेस की भी बढ़ रही है। भाजपा का मजबूत संगठन और देहात के अंतिम घर तक भाजपा का नेटवर्क भाजपा प्रत्याशी का ब्रम्हास्त्र है।

वहीं दिनेश यादव की क्षवि और अथक मेहनत के चलते जातिगत समीकरण बनने की संभावना भी नगण्य नहीं है।

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आज जबलपुर के चुनाव को कुछ लोग 1974 और 1977 से भी जोड़ रहे हैं, तो कुछ 2019 के नतीजों से भी बड़ी जीत को लेकर आश्वस्त है। जनता के मन में क्या है, यह 4 जून को ही स्पष्ट होगा।

लेकिन आज दिनेश की मेहनत और आशीष के दम ने जबलपुर के चुनाव को रोचक बना दिया है।

नामांकन फार्म दाखिल करते दिनेश यादव

दिनेश की क्षवि और मेहनत दिल में उतर रही

मिनिमम संसाधन के साथ दिनेश ने चौकाने वाला प्रभाव डाला है, जिसका नतीजा है कि आज वो जबलपुर के चुनाव में भाजपा के साथ बराबर की चर्चा में है। इसमें दो राय नहीं कि दिनेश यादव ने शुरु में एक तरफा दिख रहे चुनाव में जान डाल दी है। भाजपा खेमे को उन्हें गंभीरता से लेने के लिये मजबूर कर दिया है।

आज कुछ लोग यह भी कहने लगे हैं कि 2024 में 1974 और 1977 का इतिहास दोहराया जा सकता है। इस बार जबलपुर में 1974 जैसे हालात तो बनते दिख रहे हैं, लेकिन क्या नतीजे भी 1974 जैसे ही आएंगे?

गौरतलब है कि जबलपुर में 1974 से 1977 में उम्मीद औरन संभावना विपरीत नतीजे आए थे। कांग्रेस कद्दावर नेता बाबू जगमोहन दास के निधन के उपरांत हुए उपचुनाव में उनके पुत्र रवि मोहनदास कांग्रेस की तरफ से मैदान में उतरे थे। तब तत्कालीन छात्र नेता शरद यादव को प्रत्याशी के रुप में उतारा गया था। सब मान रहे थे जगमोहन दास ही चुनाव जीतेंगे। लेकिन जब नतीजे आए तो युवा शरद ने जबलपुर में कांग्रेस का किला तोड़ दिया था। तब शरद यादव ने भी एक वोट एक नोट का नारा दिया था। तब शरद यादव के समर्थन में कांग्रेस के अलावा सभी संगठन एकजुट हुये थे।

एक नोट एक वोट की अपील करते दिनेश

आज 2024 में दिनेश के समर्थन में सभी विपक्षीय राजनीतिक दल एक जुट हैं। आज दिनेश भी एक वोट एक नोट के नारे के साथ मैदान में है। ऐसे कई पहलू और बिन्दू हैं जो 2024 के चुनाव को 1974 से जोड़ रहे हैं। दल बल और संसाधन के लिहाज से कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी से बहुत दूर है। लेकिन हर दिन बदलती चर्चाएं कांग्रेस की उम्मीद और भाजपा की चिंता बढ़ा रही है।

भाजपाः हर फ्रंट पर मजबूत हैं आशीष

भाजपा प्रत्याशी आशीष दुबे स्वागत करते शहरवासी

भारतीय जनता पार्टी जबलपुर में अबकी बार 7 लाख पार का नारा दे रही है। भाजपा प्रत्याशी और नेता यह मानकर चल रहे हैं कि मार्जिन पिछले चुनाव से अधिक का होगा। कार्यकर्ता इतने उत्साहित और बेफिक्र हैं कि चुनाव प्रचार भी औपचारिक ही बता रहे है। लेकिन भाजपा प्रत्याशी, नेताओं और कार्यकर्ताओं का यह विश्वास पूरी तरह हवा हवाई भी नहीं है।

अगर मोदी लहर और श्री राममंदिर को हटा दिया जाए फिर भी ऐसा बहुत कुछ है, जो भाजपा को रेस में आगे दिखा रहा है।

अभी कुछ माह पूर्व एंटी इंकंबेंसी की घने बादल के बीच उन्होंने जबलपुर में तीन कांग्रेस विधायकों को औसत 30 हजार वोट के मार्जिन से हराया है। जिले में 8 में से 7 सीट पर भीतरघात की पूर्ण संभावनाओं के बीच ऐतिहासिक जीत दर्ज की है। उसके पूर्व हुये निगम चुनाव में नगर निगम सदन में बहुमत हासिल किया है।

टीएमसी के बंगाल में जिस भाजपा नेता ने भाजपा की जमीन बनाई, वो भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय जबलपुर में पूरा चुनाव लीड कर रहे हैं। पूर्व वित्तमंत्री को उनके गढ़ में हराने वाले 4 बार सांसद रहे राकेश सिंह भाजपा प्रत्याशी के सारथी बनकर आगे आगे चल रहे हैं। आज कहा जा रहा है कैलाश , राकेश और आशीष की टिकड़ी जबलपुर में चुनाव लड़ रही है। जिसके रचे चक्रव्यूह को तोड़ पाना वर्तमान में आसान नहीं है।

भाजपा प्रत्याशी आशीष दुबे के लिये संगठन एकजुट

भाजपा प्रत्याशी की किसान क्षवि ग्रामीण क्षेत्र में उनका आकर्षण बढ़ा रही है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा विधायक का स्टांग और हर घर वाले नेटवर्क भी भाजपा की मजबूत कड़ी है। 

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