सैफ मस्जिद में दावते इस्लामी की तारीखी पहल: ऐतकाफ से बदल रही नौजवानों की जिंदगी

जबलपुर की सैफ मस्जिद में दावते इस्लामी के जेरे अहतिमाम ऐतिकाफ से इंक्लाब प्रोग्राम चलाया जा रहा है. यह प्रोग्राम, एतिकाफ में शामिल होने वाले नौजवानों की जिंदगी को मुकम्मल तब्दील करने का रास्ता बन रहा है. ऐतकाफ के हर दिन यहां तक हर घंटे का प्रोग्राम बुजुर्ग उलेमाए किराम ने पहले से तय किया है. उलेमा ए किराम की पूरी टीम ऐतकाफ में शामिल नौजवानों की दुआ, अस्तगफार, जिक्र, फिक्र, तर्बियत हर उनवान पर तर्बियत कर रही हैं.
10 दिन का प्रोग्राम इस तरह से बनाया गया है कि ऐतिकाफ में शामिल नौजवान 10 दिन में सुबह उठने से लेकर सोने तक के कामों का इस्लामी तरीका, दुआएं, नमाज का सही तरीक, सही मखरज से तिलावत, आदाबे जिंदगी, अख्लाक ए हसना सीख जाए. वहीं उन्हें अस्तगफार, दुआ, नफिल नमाजों की पाबंदी उलेमा की निगरानी में कराई और सिखाई और कराई जा रही है. जिससे नौजवानों का रूहानी इरतिका हो रहा है. ऐतकाफ का हर लम्हा जिक्र, इबादत, फिक्र ए आखरत या फिर तर्बियत में खर्च हो रहा है.
सैफ मस्जिद के इमाम साहब ने बताया, तर्बियती ऐतकाफ का मकसद
सोशल मीडिया के बोहरान में, हर नौजवान हर दिन घंटों गंदगी को अपने दिमाग में डाल रहा है. अवारगी, अय्याशी फैशन हो रही है. हर कोई दुनिया के पीछे भाग रहा है. ऐसे दौर में जब गुमराही के साज ओ सामान एक क्लिक पर बच्चों की जेब में रख दिये गये हैं. ऐसे दौर में जब बेहया न होना, एक ऐब समझा जा रहा है.
ऐसे दौर में जब नौजवानों को गुमराही से निकालकर, सही रास्ते पर लाने के लिये सैफ मस्जिद में तारीखी कोशिश चल रही है. दावते इस्लामी के जेरे अहतिमाम रद्दी चौकी के पास स्थित मस्जिद सैफ में चल रही इस अजीम पहल की तारीफ और चर्चा हर खास ओ आम में होनी चाहिये.
तर्बियती एतिकाफ का मकसद क्या है..
इस तर्बियती एतिकाफ का बुनियादी मकसद यह है कि, नौजवानों की 10 दिन तक इस माहौल में रखना, उनकी तर्बियत इस तरह से करना है, कि जब 10 दिन के बाद नौजवान अपने घर लौटे तो उनकी अपनी जिंदगी में इंक्लाब आ चुका हो.
बदल रही नौजवानों की जिंदगी…
ऐतकाफ में शामिल नौजवानों ने क्या कहा आईए जानते हैं….
सुबह से शाम तक क्या होता है..
सैफ मस्जिद के इमाम और दावते इस्लामी के मुबल्लिग हाफिज इमरान अत्तारी साहब ने बताया, इस 10 दिनि एतकाफ में सुबह फज्र की नमाज के बाद तफसीर ए कुरआन का हलका होता है. दर्स का सिलसिला शुरु होता है. फिर दीनी मौजू पर बयान, फिर कुरआनी जिक्र अजकार सिखाए जाते हैं. जिसके बाद सुबह उठने से लेकर सोने तक की दुआ याद कराने का दौर शुरु होता है. दिन का पहला सेशन फज्र बात से 8 बजे तक चलता है.

दूसरा सेशन दोपहर 11 बजे से जोहर के पहले तक चलता है. जिसमें मकतबे मदीना का दर्स, नमाज में पढ़े जाने वाले अजकार याद कराना और दीगर दीनी कामों की मश्क कराई जाती है.
तीसरा सेशन जोहर बाद से शुरु होता है. जिसे प्रेक्टिकल सेशन कहा जाता है. इसमें ऐतकाफ में बैठे नौजवानों को नमाज का तरीका, गुस्ल, वजू, नमाजे जनाजा का तरीका सहित दीगर जरूरी उमूर को उलेमा ए किराम की मौजूदगी में प्रैक्टिल सेशन में सिखाया जाता है.

अस्र के बाद सुन्नत और आदाबे जिंदगी का हलका होता है, फिर बयान और अफ्तार किया जाता है. तरावीह के बाद पूरे दिन में क्या सीखा गया, उसका रीवीजन कराया जाता है और नौजवानों के सवालात के जवाब दिये जाते हैं. फिर तहज्जुद में उठाया जाता है, जहां सब तहज्जुद की नमाज और दुआएं करते हैं.
यही सिलसिला पूरे 10 दिन चलता है. हर दिन किस सेशन में क्या होगा, इसका प्रोग्राम उलेमा ए किराम की निगरानी में पहले से बना हुआ होता है.
उलेमाए किराम की होती है रहनुमाई…
नौजवानों का पूरा एतिकाफ उलेमा ए किराम और बुजुर्गों की रहनुमाई में अदा होता है.